Mann ki talash ( Pursuit of Self)

मन की मैं  (mann ki main )


pursuit of  self 


मन के भावों में जो अंजाना सा अभाव है 
अपने अस्तित्व से जुदा, इक अनोखा सा लगाव है 
रेत के घरों में रहता , इक बेचैन सा ठहराव है 

आस  पास से लिए उधार के शब्दों, से दुनिया उसारता 
और आज उसी मन का, मन से मुटाव है 
जाने कैसे, जाने क्यों, खुद ही से अलगाव है 


self captive 


खुद ही के चुने हुए पथ पर से भागने का मन है 
ये दुनिया मेरी बुनी हुई है, या फिर मेरा कोई भ्रह्म है 
राहगीरों को देखता , उन्ही में सम्मिलित हो जाता हूँ 

मेरे खुद के अस्तित्व का चेहरा क्यों उदास है 
पागल है शायद, मान बैठा है खुद को खुदा
और  खुद ही से खुद लड़कर जा बैठा है जुदा 
शायद इस मन की मैं का यही इलाज है 

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