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Mann ki talash ( Pursuit of Self)

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मन की मैं  (mann ki main ) pursuit of  self  मन के भावों में जो अंजाना सा अभाव है  अपने अस्तित्व से जुदा, इक अनोखा सा लगाव है  रेत के घरों में रहता , इक बेचैन सा ठहराव है  आस  पास से लिए उधार के शब्दों, से दुनिया उसारता  और आज उसी मन का, मन से मुटाव है  जाने कैसे, जाने क्यों, खुद ही से अलगाव है  self captive  खुद ही के चुने हुए पथ पर से भागने का मन है  ये दुनिया मेरी बुनी हुई है, या फिर मेरा कोई भ्रह्म है  राहगीरों को देखता , उन्ही में सम्मिलित हो जाता हूँ  मेरे खुद के अस्तित्व का चेहरा क्यों उदास है  पागल है शायद, मान बैठा है खुद को खुदा और  खुद ही से खुद लड़कर जा बैठा है जुदा  शायद इस मन की मैं का यही इलाज है 

बहस है भड़ास है - Behas Hai Bhadaas Hai

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बहस है भड़ास है - Behas Hai Bhadaas Hai हिंदी बहस सर्कस  की दूकान हर तरफ जो बहस है  बहस है भड़ास है  आदमी निराश है   क्या घंटा विकास है  जलने की आदत है  तपती हुई रेत में  तरुवर की छांव भी  लिपटी इक रेस में  अजब सी ये प्यास है  चुबती हर सांस है  शवों की ये नगरी  लगती प्रगाढ़ है  खून है ख़राब है  फैली बिसात है  आज मेरी बारी  तो कल तेरी रात है  बिच्छुओं के मेले में  नाचता अकेला है वाद का विवाद है  या गहरी सी चाल है मेरी बात सत्य है तेरी में झोल है सत्य ही असत्य है अजब सा ये मेल है रेंगती है रौशनी तो नाचता अँधेरा है  बहस है भड़ास है  फैली बिसात है ||  DISCLAIMER:- This picture is not pasted with intention of maligning a single broadcasting group. Instead consider it as a general representation for news channels these days.

Masandvaad ................SGPC Vs HSGMC

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आज अखबारें भरी पढ़ी हैं HSGMC (जन्म। 2014) और SGPC (जन्म। 1925 ) की  ख़बरों  से. बड़े बड़े न्यूज़ चैनल से ले के देसी रसाले तक इसी बात का चिंतन कर रहे हैं क गुरुद्वारों का प्रभंधन करेगा कौन? एक बहुत ही अच्छी मिसाल दे रहा है सिख जगत, अपने श्रद्धा और भाव की । धार्मिक संस्थानों से इतना लगाव,आखिर क्यों और कैसे?  फिर जब इस सवाल को मैंने थोड़ा और टटोला तो एक चीज़ समझ आई और खुद से एक सवाल किया कि  हर गुरूद्वारे में ऐसा क्या है जिसे एक दूसरे से हथ्याने की होड़ लग गयी. तब जा क समझ आई क हर गुरूद्वारे में सांगत क इलावा एक श्री गुरु ग्रन्थ साहिब का प्रकाश होता है और माथा टेकने से पहले गोलक पढ़ी होती है। तब जा के मेरा माथा ठनका और समझ आया क गुरूद्वारे में सेवा गुरु ग्रन्थ साहिब की नहीं, बल्कि गोलक की करना चाहते हैं ये सब जथेबंदक लोग. अगर गुरु ग्रन्थ साहिब की गरिमा की बात होती, या सेवा की बात होती तो शायद इतना बवाल ही न करते ये लोग. अब समस्या तो समझ आ गयी, पर इस समस्या का समाधान ढूंढा भी अति-आवश्यक  है। तो मेरे हिसाब से उसके समाधान हेतु, हम संगत को, पैस...