ब्रह्म - भ्रम मोदी


 ब्रह्म - भ्रम मोदी 


अमिताभ बच्चन साहब  ने कहा भी था कि ३ स्तम्भ याद रखना प्रतिष्ठा, अनुशासन और परम्परा, और मोदी जी वही भूल गए, बस प्रतिष्ठा दांव पर लगा दी बिना अनुशासन और परंपरा के । मोदी सरकार के 9 महीने के बाद आखिरकार अच्छे दिन आ ही गए। अच्छे दिन इसलिए के मोदी जी अब भ्रम में जी कर खुद को ब्रह्म नहीं समझेंगे ।
कमाल का इलेक्शन कमाल का इमोशन और कमाल का मीडिया कवरेज, मानो दिल्ली के इलावा भारत में और कोई राज्य एवं  समस्या है ही नहीं। चलो अंत भले का भला,  शुक्र है खत्म हुआ इलेक्शन 2015। 

अब मोदी जे को ये चीज़ सीखनी चाहिए के, सिर्फ टेलीविज़न  के माध्यम से या  फेसबुक और ट्विटर से  इलेक्शन नहीं जीत सकते और वो स्वयं  को ब्रह्म समझना बंद करें । 
जो कार्यकर्ता 10  10  वर्षों से लोगों के बीच में काम कर रहे हैं, उनको अनदेखा करने का दुस्सहस  दोबारा न करें । ज़मीनी हकीकत  ये  है क कार्यकर्ता  काम करते हैं तो ही  आप मंत्री  बनते हैं । किरण  बेदी  को चुनाव से कुछ दिन पूर्व ला कर आप चुनाव को अपने अकेले के बलबूते नहीं जीत सकते । 

आपका सामर्थ आपके  कार्यकर्ताओं से है, जो ज़मीनी हकीकत से जुढ़े  हुए हैं, न के लक्ज़री गाड़ियों  में घूमने वाले बिज़नेस मैनों  से । कार्यकर्ता  का ऋण चुकाइये, न के उसे हटाइये। चलिए सबसे ज़रूरी है सीख और वो तो आपको इस चुनाव से लेनी चाहिए। कभी कभी सीखना भी अच्छा है । इससे अहम दूर होता है । चलिए गुड लक फॉर अछ्छे दिन और अगले चुनाव ॥ 


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